तिरुवरङ्ग पेरुमाळ अरैयर्

श्रीः

श्रीमते रामानुजाय नमः

श्रीमद् वरवरमुनये नमः

श्री वानाचलमहामुनये नमः

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श्री रङ्गम -तिरुवरङ्ग पेरुमाळ अरैयर्

तिरुनक्षत्र: वैशाख मास ज्येष्ठ नक्षत्र
अवतार स्थल: श्री रङ्गम
आचार्य: मणक्काळ नम्बि , आळवन्दार्
शिष्य: एम्पेरुमानार्(ग्रन्थ कालक्षेप शिष्य )
परमपद(वैकुण्ठ)प्राप्ति स्थल: श्री रङ्गम

तिरुवरङ्ग पेरुमाळ अरैयर् आळवन्दार् के सुपुत्र और उनके शिष्य गण में मुख्य थे । अरैयर् संगीत ,नृत्य और नाटक के महान कोविद थे । अध्ययन उत्सव के अरैयर् सेवा में, नम्पेरुमाळ के उपस्तिथि में, तिरुवायमोळि(१०.२) के “केडुमिडर् ” पदिग का गान कर रहे थे । उस समय में गोष्टी के नेता आळवन्दार् की ओर देखते हुए “नडमिनो नमर्गळउळ्ळिर् नामुमक्कु अरिय चोणोम्” का गान करते हैं अर्थात् “मेरे प्यारे भक्तों , इसी वक्त तिरुवनन्तपुरम जाईये “। आळवन्दार् इसे नम्पेरुमाळ का सन्देश मानते हैं और तिरुवनन्तपुरम के अनन्त शयन पेरुमाळ को मंगलाशासन करने के लिए निकल पड़ते हैं । आळवन्दार् के अन्तिम काल में बताई गई बातों से पता चलता है कि अरैयर् को तिरुप्पाणाळ्वार के प्रति बहुत लगाव था । तिरुवरङ्ग पेरुमाळ अरैयर् को पेरिय पेरुमाळ और तिरुप्पाणाळ्वार के प्रति अत्यन्त भक्ति थी और इसी कारण अपने आख़री समय आळवन्दार् सभी लोगों को उनके प्रति लगाव बढ़ाने की सलाह  देते हैं । इनकी ऐसी महानता है कि स्वयं आळवन्दार् ने सभी के समक्ष इनकी प्रशंसा की है । श्री रामानुज स्वामी जी का श्रीरङ्ग में आगमन के पीछे आप श्री ने एहम भूमिका निभाई है। आळवन्दार् के समय के बाद और एम्पेरुमानार् सन्यास आश्रम ग्रहण करने के बाद , श्रीरङ्गम के सभी श्री वैष्णव नम्पेरुमाळ से प्रार्थना किया करते थे कि श्री रामानुज स्वामी जी को श्रीरङ्गम ले आये और तदनंतर इस क्षेत्र में उनके नित्य निवास की व्यवस्था करे । पेरिय पेरुमाळ तुरन्त देव पेरुमाळ से विनती करते हैं कि श्री रामानुज स्वामी जी को श्रीरङ्गम भेजे । श्री रामानुज उनके बहुत प्रिय होने के कारण पेररुळाळन उनकी विनती इन्कार कर देते हैं । उस समय पेरिय पेरुमाळ एम्पेरुमानार् को श्रीरङ्गम लाने के लिए एक विशेष योजना बनाते हैं । अरैयर से कहते हैं की पेररुळाळन को संगीत और स्तोत्र बहुत पसन्द है और जब प्रसन्न होंगे तब कुछ भी देंगे । इस प्रकार अरैयर को आदेश देते हैं कि पेररुळाळन को प्रसन्न कर उनसे एम्पेरुमानार् को प्रसाद के रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना करें |

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अरैयर् उसके बाद काँचीपुरम की ओर निकलते हैं । वहाँ वरम् तरुम् पेरुमाळ अरैयर् (स्थानीय अरैयर् ) उन्हें गौरव-मर्याद से स्वागत करके उन्हें अपने तिरुमालिगै को ले जाकर उनकी अच्छी देख-भाल करते हैं । उसके अगले दिन, अरैयर् का आगमन सुनकर तिरुकच्चि नम्बि उनसे मिलकर, प्रणाम समर्पण कर उनका सुःख-दुःख विचार करते हैं । अरैयर् नम्बि से उन्हें देव पेरुमाळ का मंगलाशासन करने की विनती करते हैं (यह परम्परां है कि जो कोई भी दिव्य देश दर्शन करने जाते हैं तो उस दिव्य-देश के स्थानीय श्री-वैष्णव के द्वारा ही दिव्य-देश के एम्पेरुमान् का दर्शन सेवा करते हैं ।) नम्बि उनकी विनती को स्वीकृत करते हैं और अरैयर् देव पेरुमाळ के दर्शन कर प्रणाम करते हुए कहा – “कधा पुनस् शङ्ख रथाङ्ग कल्पक ध्वज अरविन्द अङ्गुच वज्र लाञ्चनम् ; त्रिविक्रम त्वच्चरणाम्भुज द्वयम् मदिया मूर्द्धनम् अलङ्करिष्यति ” मतलब “ओह त्रिविक्रम ! शंख , सुदर्शन चक्र ,कल्पक वृक्ष,कमल इत्यादि दिव्य चिन्हों से प्रकाशित चरण कमल कब मेरे सिर को अलंकृत करेंगे”। अपने अर्चक के द्वारा एम्पेरुमान् उन्हें तीर्थं, प्रसाद और श्री शठगोप इत्यादि प्रसाद करते हैं और उन्हें अपने सामने अरैयर सेवा करने का आदेश देते हैं। अरैयर् उत्कृष्ट भक्ति और  प्रेम से अनेकानेक श्लोक, आळ्वार् के श्री सूक्त से अभिनय पूर्वक गान करते हैं । एम्पेरुमान् बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और अनेक भेंट प्रसादित करते हैं । अरैयर् उन भेंट को निराकर करते हैं क्यूँकि देव पेरुमाळ ही हैं जो सभी के इच्छाओं की पूर्ति करते हैं , एम्पेरुमान् उनकी भी इच्छा पूर्ती करेंगे । एम्पेरुमान् राज़ी होते हैं और कहते हैं “मुझे और मेरी अर्धांगिनी के अलावा जो भी चाहो तुम पूछ सकते हो ।” अरैयर् श्री रामानुज की ओर इशारा करते हैं और उन्हें श्रीरङ्गम् ले जाने की प्रस्तावना करते हैं । देव पेरुमाळ कहते हैं “मैंने नहीं सोचा की आप उन्हें पूछने वाले हैं, कुछ और माँगीये”। अरैयर् जवाब देते हैं “आप दूसरे और नहीं हैं स्वयं श्रीराम के अवतार हैं – आप मेरे विनती को और टाल नहीं सकते हैं “।  देव पेरुमाळ आखिर में उनकी विनती स्वीकार करते हैं और श्री रामानुज को विदा करते हैं । अरैयर् श्री रामानुजर् का हाथ पकड़कर, श्रीरङ्गम् की ओर चल पड़ते हैं, श्री रामानुज आण्डान् और आळ्वान् के मठ जाकर , तिरुवाराधन पेरुमाळ (पेररुळाळन) और आराधन के वस्तु सामग्री लाने को कहते हैं और सब मिलकर देव पेरुमाळ से आज्ञा लेकर श्रीरङ्गम् निकल पड़ते हैं । इस तरह उन्होंने श्री वैष्णव सम्प्रदाय के सबसे प्रधान कैङ्कर्य यानि “श्री रामानुज को श्रीरङ्गम् लाकर, दृढता पूर्वक सम्प्रदाय की स्थापना करने एवं सम्प्रदाय नई ऊँचाईयों को छूने” मे एहम पात्र का पोषण किया । उडैयवर् को पाँच विविध अंश-बोध करने के लिए आळवन्दार् ने अपने पाँच शिष्यों को नियुक्त किया था । पेरिय नम्बि उडैवर् को पञ्च संस्कार प्रदान करते हैं । पेरिय तिरुमलै नम्बि ने उन्हें श्री रामायण का बोध किया  । तिरुकोष्टियूर् नम्बि ने  तिरुमन्त्र और चरम श्लोक का ज्ञान प्रदान किया । तिरुमलै आण्डान् तिरुवाय्मोळि का अर्थ अनुग्रह किया । तिरुवरंगपेरुमाळ अरैयर् को अरुळिचेयळ और चरमोपायम्(उत्कृर्ष साधन  – आचार्य निष्ट ) का कुछ भाग शिक्ष देने का आदेश आळवन्दार् से प्राप्त हुआ । एम्पेरुमानार् तिरुवाय्मोळि का सारार्थ परिपूर्ण रूप से  तिरुमलै आण्डान् से ग्रहण करते हैं । तत्पश्चात् पेरिय नम्बि उन्हें अरैयर् से सम्प्रदाय का सार ग्रहण करने की आज्ञा देते हैं ।  एम्पेरुमानार् , शास्त्र से नियमित सिद्धान्त का अनुशीलन करते हुए , अरैयर् के पास अध्यायन करने से पहले उनकी शुश्रूषा ६ महीने तक करते हैं । प्रति दिन दूध को उचित उष्ण में प्रस्तुत करते थे और साथ ही आवश्यक अनुसार शरीर पर लगाने के लिए हल्दी का मिश्रण भी तैयार करके देते थे ।

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एकदा एम्पेरुमानार् से तैयार किया गया हल्दी का मिश्रण अरैयर् को पसन्द नहीं आया और उडैयवर् अरैयर् के मुखमण्डल को देखकर, जो असंतुष्टि प्रकट कर रहा था, नापसंदगी का कारण जान गए । उडैवर् तुरन्त हल्दी का दूसरा मिश्रण तैयार करते है जो अरैयर् के मन को अत्यन्त मोहित करता है और तदनन्तर अरैयर् उन्हे चरम उपाय और उपेय अर्थात् “आचार्य कैङ्कर्य” का बोध करते हैं । अरैयर् शिक्षा देते हैं की “आचार्य कोई और नहीं बल्कि एम्पेरुमान् जो क्षीर सागर में शयनित हैं उनका प्रत्यक्ष रूप हैं “।  हमने चर्मोपाय में इसके बारे में चर्चा की हैं ।

कई ऐधियम् (पूर्वाचार्य के निज़ी जीवन में घटित संघटन) में अरैयर् की महानता वर्णित हैं । आईये कुछ यहाँ देखे

१. ईडु व्याख्यान (१. ५. ११ ) “पालेय् तमिळर् इशैकारर्” के विवरण में – ” इशैकारर् ” अर्थात् संगीत विद्वान और नम्पिळ्ळै आळ्वान् को बताते समय तिरुवरङ्ग पेरुमाळ अरैयर् को इशैकारर् से सम्बोधित करते हैं ।

२. ईडु व्याख्यान(३.३.१) मे, नम्पिळ्ळै विवरण देते हुए बताते हैं जब अरैयर् “ओळिविळ कालमेलाम्” का गान करते समय, भावुक होकर कालमेलाम्, कालमेलाम्, कालमेलाम्, कालमेलाम् (सारा समय) यह कहते हुए ही पासुर की पूर्ती करते हैं । इस पदिग में, आळ्वार तिरुवेङ्कट अमुदायन् नित्य कैङ्कर्य के लिए प्रार्थना करते हैं और इस पदिग को द्वय मन्त्र के दूसरी पंक्ति (कैङ्कर्य प्रार्थना) का विवरण माना जाता हैं । आईये तिरुवरङ्ग पेरुमाळ अरैयर् के श्री चरण कमलों मे प्रार्थना करें कि हम भी उनकी तरह एम्पेरुमान् , आळ्वार  एवं आचार्य के प्रति भक्ति कैङ्कर्य भाव प्राप्त करें ।

तनियन

श्रीराममिश्र पदपंकज संचरीकम् श्रीयामुनार्यवरपुत्रमहंगुणाब्यम् |
स्रीरन्गराज करुणा परिणाम दत्तम् श्रीभाश्यकार शरणम् वररन्गमीडे ||

अडियेन इन्दुमति रामानुज दासि

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