नायनाराच्चान्पिल्लै

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

जन्म नक्षत्र : आवणि (श्रावण), रोहिणी नक्षत्र (यतीन्द्र प्रवणं प्रभावं में चित्रा नक्षत्र दर्शाया गया है)

अवतार स्थल: श्रीरंगम

आचार्य: पेरियवाच्चान पिल्लै

शिष्य: वादिकेसरी अलगिय मणवाल जीयर, श्री रंगाचार्यर्, परकाल दासर, आदि

स्थान जहाँ परमपद प्राप्त हुआ: श्रीरंगम

रचनाएँ: चरमोपाय निर्णयं (http://ponnadi.blogspot.in/p/charamopaya-nirnayam.html), अनुत्व पुरुष्कारत्व समर्थनम्, ज्ञानार्नवं, मुक्त भोगावली, आलवन्दार के चतु:श्लोकी व्याख्यान, पेरियवाच्चान पिल्लै के विष्णु शेषी श्लोक का व्याख्यान, तत्व त्रय विवरण, कैवल्य निर्णयं, आदि।

नायनाराच्चान्पिल्लै, पेरियवाच्चान पिल्लै के दत्तक पुत्र थे। उनका नाम अलगिय मनावाल पेरुमाल नायनार् (सुंदर वर राजाचार्य)। परकाल दासार की कृति परकाल नल्लान रहस्य में उन्हें सौम्यवरेश्वर नाम से संबोधित किया गया है। उन्हें “श्री रंगराज दीक्षितर्” के नाम से भी जाना जाता है और वे एक विद्वान व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने सत् संप्रदाय के सिद्धांतों की स्थापना के लिए कई ग्रंथों की रचना बहुत प्रमाणिकता से की है। वे पिल्लै लोकाचार्य और अलगिय मनावाल पेरुमाल नायनार् के पसंद के साथ रहते थे।

उनकी रचनाएँ संप्रदाय के प्रमुख सार को प्रदर्शित करती है। उनके द्वारा रचित चरमोपाय निर्णय, एम्पेरुमानार और संप्रदाय में उनकी विशेष स्थिति के वास्तविक गौरव को दर्शाती है। अपनी चतु:श्लोकी के व्याख्यान में, उन्होंने बड़ी स्पष्टता से पेरिय पिराट्टी के गुणों को विस्तार से बताया है।

प्रमेय रत्नम् (वादिकेसरी अलगिय मणवाल जीयर के शिष्य यामुनाचार्य द्वारा रचित) में यह बताया गया है कि नायनाराच्चान्पिल्लै ने मुक्त भोगावली की रचना बहुत ही छोटी आयु में की थी और उसे पेरियवाच्चान पिल्लै को दिखाया था। उस रचना की गहराई को जानकर, पेरियवाच्चान पिल्लै उनकी बहुत सराहना करते हैं और उन्हें विस्तार से हमारे संप्रदाय के सार का अध्यापन शरू करते हैं।

यद्यपि वादिकेसरी अलगिय मणवाल जीयर, श्री रंगाचार्यर, परकाल दासार आदि पेरियवाच्चान पिल्लै के शिष्य हैं परन्तु उन्होंने भगवत विषय आदि का अध्ययन नायनाराच्चान्पिल्लै के सानिध्य में किया।

इस तरह हमने नायनाराच्चान्पिल्लै के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी। वे महान विद्वान थे और पेरियवाच्चान पिल्लै के बहुत प्रिय थे। हम सब उनके श्री चरण कमलो में प्रार्थना करते हैं कि हम दासों को भी उनकी अंश मात्र भागवत निष्ठा की प्राप्ति हो।

नायनाराच्चान्पिल्लै की तनियन:

श्रुत्यअर्थसारजनकम् स्मृतिबालमित्रम । पद्मोल्लसध भगवदंग्री पुराणभंधुम् ।।
ज्ञानाधिराजम् अभयप्रदराज सूनुम। अस्मत् गुरुं परमकारुणिकम् नमामि।।

-अदियेन् भगवति रामानुजदासी

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