ईयुण्णि माधव पेरुमाळ्

श्रीः
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श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

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नम्पिळ्ळै कालक्षेप गोष्ठी – दाएँ से दुसरे स्थान पर ईयुण्णि माधव पेरुमाळ्

जन्म नक्षत्र : कार्तिक, भरणी

अवतार स्थल: श्रीरंगम

आचार्य: नम्पिळ्ळै (कलिवैरिदास स्वामीजी)

शिष्य: ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ्  (उनके पुत्र)

ईयुण्णि माधव पेरुमाळ्, नम्पिळ्ळै के प्रिय शिष्य थे। उन्हें सिरियाळ्वान् अप्पिळ्ळै नाम से भी जाना जाता है । तिरुवाय्मोळि का ईडु महा व्याख्यान उन्हीं के माध्यम से मणवाल मामुनि के पास पहुंचा।

तमिल में “ईथल” का अर्थ है परोपकार । “उन्नुथल” का अर्थ है भोजन करना । ईयुण्णि का अर्थ है – वह जो बड़े परोपकारी है, जो अन्य श्री वैष्णवों को भोजन कराने पर ही स्वयं भोजन करता है ।

नम्पिळ्ळै, भगवत विषय के कालक्षेप में निरंतर लगे हुए थे । वह श्रीरंगम में श्री वैष्णव संप्रदाय का सुनहरा समय था, जब सभी लोग नम्पिळ्ळै की अद्भुत बुद्धि के माध्यम से भगवत अनुभव में सराबोर हो रहे थे।  भगवान और अपने आचार्य (नंजीयर/ वेदांती स्वामीजी) की दिव्य कृपा से नम्पिळ्ळै एक श्रेष्ठ बुद्धिजीवी थे, जो दक्षता से मुख्यतः श्री रामायण और अन्य पुराण/ इतिहासिक घटनाओं के उदहारण के माध्यम से उन सुंदर सिद्धांतों की व्याख्या करने में सक्षम थे जो आलवारों के पासुरों में दर्शाये गये हैं।

वडुक्कु तिरुवीधि पिळ्ळै, नम्पिळ्ळै के प्रिय शिष्य थे। दिन में नम्पिळ्ळै से तिरुवाय्मोळि के कालक्षेप सुनकर वे रात में उसे नियमित रूप से लिख लिया करते थे। व्याख्यान श्रृंखला के पूर्ण होने पर एक बार नम्पिळ्ळै वडुक्कु तिरुवीधि पिळ्ळै के निवास पर जाते हैं और उनके द्वारा तिरुवाय्मोळि के कालक्षेप में कहे गये शब्दों को वहाँ ताड़ के पत्तों पर लिखा हुआ देखते हैं। वे उसे पूरा पढ़ते हैं और जिस सटीकता से सभी तत्वों को लिखा गया था, उस शैली से बहुत प्रसन्न होते हैं। तथापि उनकी आज्ञा के बिना उसे लिखने पर वे वडुक्कु तिरुवीधि पिळ्ळै से नाराज होते हैं। वे अपनी असहमति दर्शाते हैं पर अंततः वडुक्कु तिरुवीधि पिळ्ळै के महान समर्पण भाव से आश्वस्त होते हैं। तिरुवाय्मोळि का यह व्याख्यान “ईडु 36000 पद” के नाम से प्रसिद्ध है। वे उन ताड़ के पत्तों को ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् को सौंप देते हैं और उन्हें अपने शिष्यों को उसे सिखाने को कहते हैं। यह चरित्र वडुक्कु तिरुवीधिपिळ्ळै में विस्तार से बताया गया है।

ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् अपने पुत्र ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् को यह सिखाते हैं। ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् का जन्म नक्षत्र स्वाति है । ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् इसे अपने प्रिय शिष्य नालूर् पिळ्ळै को सिखाते हैं।

नालूर् पिळ्ळै,  नालूर् रान (जो कुरेश स्वामीजी के शिष्य थे) के वंशज थे। उनका जन्म मैइपदगम (थोंदाई नाडू) में हुआ था। उनका जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था। उन्हें सुमन:कोसलर, कोला वराह पेरुमाल नायनार, रामानुजार्य दासार, अरुलालर तिरुवाडी उनरियवर के नाम से भी जाना जाता है। उनके शिष्यों में नालूर् आच्चान् पिळ्ळै, तिरुप्पुलिंगुडी जीयर और तिरुक्कण्णगुडी जीयर शामिल थे।

तिरुप्पुलिंगुडी जीयर ने श्री वैष्णव चरितम नामक के ग्रन्थ की रचना की।

नालूर् आच्चान् पिळ्ळै, नालूर् पिळ्ळै के पुत्र और प्रिय शिष्य थे। उनका जन्म धनु-भरणी नक्षत्र में हुआ था। उन्हें देवाराज आच्चान् पिळ्ळै, देवेसर, देवादिपर और मैनाडू आच्चान् पिळ्ळै नाम से भी जाना जाता है। नालूर् आच्चान् पिळ्ळै ने 36000 पद ईदू का अध्ययन अपने पिताश्री के चरण कमलों के सानिध्य में किया था। उनके शिष्यों में तिरुनारायणपुरातू आय, इलाम्पिलीचैपिळ्ळै और तिरुवाय्मोळि पिळ्ळै शामिल थे।

नालूर् पिळ्ळै और नालूर् आच्चान् पिळ्ळै, दोनों ही तिरुनारायणपूर में निवास करते थे।

तिरुवाय्मोळि पिळ्ळै, कूरकुलोत्तम दासर के आदेश के अंतर्गत, तिरुवाय्मोळि का अर्थ सीखने के लिए कांचीपुरम के लिए प्रस्थान करते हैं। उसी समय, नालूर् पिळ्ळै और नालूर् आच्चान् पिळ्ळै भी कांचीपुरम पहुँचते हैं। वे सभी देव पेरुमाल के समक्ष एक दूसरे से मिलते हैं। उस समय देव पेरुमाल, अर्चकर के माध्यम से बात करके, बताते हैं कि पिळ्ळै लोकाचार्य और कोई नहीं स्वयं भगवान हैं और नालूर् पिळ्ळै को आदेश करते हैं कि वे तिरुवाय्मोळि पिळ्ळै को ईदू व्याख्यान का उपदेश दें। परंतु नालूर् पिळ्ळै देव पेरुमाल से पूछते हैं कि क्या वे ठीक तरह से उन्हें उपदेश कर पाएंगे (अपनी अधिक उम्र की वजह से)? इस पर देव पेरुमाल कहते हैं “तब आपके पुत्र (नालूर् आच्चान् पिळ्ळै) उन्हें उपदेश कर सकते हैं। उनका उपदेश करना आपके उपदेश करने के समान ही है”। इस तरह से तिरुवाय्मोळि पिळ्ळै अन्य श्री वैष्णवों के साथ नालूर् आच्चान् पिळ्ळै से ईदू व्याख्यान का अध्ययन करते हैं और कालांतर में आलवार तिरुनगरी लौटकर उसे मणवाल मामुनिगल को सिखाते हैं, जो ईत्तू पेरुक्कर (जिन्होंने ईदू व्यख्यान का पोषण किया) के रूप में प्रसिद्ध हुए।

ऐसा कहा जाता है कि नालूर् पिळ्ळै अथवा नालूर् आच्चान् पिळ्ळै ने तिरुमोळि और पेरियाळ्वार् तिरुमोळि के लिए व्याख्यान लिखा है।

मामुनि ने अपने उपदेश-रत्नमाला में ईडु व्याख्यान के हस्तांतरण को पासूर ४८ और ४९ के माध्यम से सुंदरता से समझाया है।

  • ४८ वे पासूर में वे कहते हैं, वडुक्कू तिरुवीधि पिळ्ळै ने ईडु 36000 पद व्याख्यान की रचना की और नम्पिळ्ळै ने उसे उनसे लेकर, ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् को सौंप दिया ।
  • ४९ वे पासूर में वे कहते हैं ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् से उनके पुत्र ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् ने उसका अध्ययन किया और फिर वह नालूर् पिळ्ळै और नालूर् आच्चान् पिळ्ळै को हस्तांतरित हो गया । तत्पश्चात् उसे तिरुवाय्मोळि पिळ्ळै, तिरुनारायणपुरातू आय, आदि को सिखाया गया।

इस तरह हमने ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी । वे एक महान विद्वान थे और नम्पिळ्ळै के बहुत प्रिय थे । हम सब उनके श्री चरण कमलो में प्रार्थना करते हैं कि हम दासों को भी उनकी अंश मात्र भागवत निष्ठा की प्राप्ति हो । इस अभिलेख में हमने देखा कैसे ईडु व्याख्यान नम्पिळ्ळै से हस्तांतरित होते हुए मणवाल-मामुनि तक पहुंचा।

ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् का तनियन:

लोकाचार्य पदाम्भोज समश्रयम् करुणाम्बुधिम् ।
वेदांत द्वय संपन्नम् माधवार्यम् अहम् भजे । । 

ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् का तनियन:

माधवाचार्य सत्पुत्रं तत्पादकमलाश्रितम ।
वात्सल्यादी गुणैर्युक्तं पद्मनाभ गुरुम् भजे । ।

नालूर् पिळ्ळै का तनियन:

चतुर्ग्राम कुलोद्भूतं द्राविड़ ब्रह्म वेदिनं  ।
यज्ञार्य वंशतिलकं श्रीवराहमहं भजे  । ।

नालूर् आच्चान् पिळ्ळै का तनियन:

नमोस्तु देवराजार्य चतुर्ग्राम निवासिने ।
रामानुजार्य दासस्य सुताय गुणशालिने । ।

अदियेन् भगवति रामानुजदासी

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