पिल्लै उरंगा विल्ली (धनुर्दास स्वामीजी)

श्री:
श्रीमते शठकोपाये नमः
श्रीमते रामानुजाये नम:
श्रीमदवरवरमुनयेनम:
श्री वानाचलमहामुनयेनमः

जन्म नक्षत्र : माघ, अश्लेषा

अवतार स्थल: उरैयूर

आचार्य: एम्पेरुमानार

स्थान जहाँ परमपद प्राप्त किया: श्रीरंगम

पिल्लै उरंगा विल्ली दासर राजा के सभा के एक महान पहलवान थे और अपनी पत्नी पोंन्नाच्चियार (हेमाम्बा) के साथ उरैयूर में रहते थे। वे अपनी पत्नी की सुंदरता (विशेषतः उनके सुंदर नेत्रों) की वजह से उनसे बहुत प्रेम करते थे। मूलतः उन्हें धनुर्दास नाम से जाना जाता है। वे बहुत धनाढ्य (धनी) थे और उनकी बहादुरी के लिए राज्य में उनका बहुत सम्मान था।

pud-1एक बार श्री रामानुज अपने शिष्यों के साथ मार्ग से जाते हुए देखते हैं कि धनुर्दास पोंन्नाच्चि (हेमाम्बा) के आगे आगे एक हाथ में छाता लेकर उसे धुप से बचाते हुए और एक हाथ में उसके आराम के लिए जमीन पर कपड़ा लिए हुए उसके सामने चल रहे थे। एम्पेरुमानार धनुर्दास के एक स्त्री के प्रति ऐसे लगाव को देखकर अचंभित रह जाते हैं और उन्हें अपने पास बुलाते हैं। एम्पेरुमानार उनसे पूछते हैं कि वे उस स्त्री की ऐसी सेवा क्यों कर रहे हैं? धनुर्दास कहते हैं कि उसके नेत्र बहुत ही सुंदर है और वह उसकी सुंदरता के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं और उसकी रक्षा के लिए कुछ भी कर सकते हैं। एम्पेरुमानार, जो सबसे बुद्धिमान हैं तुरंत धनुर्दास से कहते हैं कि अगर वे उन्हें उनकी पत्नी के नेत्रों से भी सुंदर नेत्र दिखा दे तो क्या वे इसी तरह उनके समक्ष समर्पित हो जायेंगे और उनकी रक्षा करेंगे? धनुर्दास तुरंत उसे स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि वे उन अत्यंत सुंदर तत्व के समर्पित हो जायेंगे। एम्पेरुमानार उन्हें श्री रंगनाथ भगवान के समक्ष ले जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे धनुर्दास को उन्ही सुंदर नेत्रों का दर्शन कराये जो उन्होंने परकाल आलवार को दिखाए थे। भगवान के नेत्र प्राकृतिक रूप से सबसे सुंदर है और उन्हें देखकर धनुर्दास को अनुभव होता है कि उन्हें वास्तविक सुंदरता मिल गयी है। वे तुरंत एम्पेरुमानार के शरण हो जाते हैं और उनसे उन्हें अपना शिष्य बनाने की प्रार्थना करते हैं। उनकी पत्नी भी भगवान और एम्पेरुमानार की महानता को समझकर एम्पेरुमानार के शरण हो जाती है और उनसे मार्गदर्शन की विनती करती है। दंपत्ति अपने सारे व्यामोह छोड़कर श्रीरंगम में निवास के लिए आ जाते हैं और एम्पेरुमानार व भगवान के चरण कमलों की सेवा करने लगते हैं । भगवान धनुर्दास पर बहुत कृपा करते हैं और क्यूंकि वे भगवान की सेवा पूजा लक्ष्मणजी के समान किया करते थे, जो श्रीराम के वनवास के समय कभी नहीं सोये, वे पिल्लै उरंगा विल्ली दासर नाम से प्रसिद्ध हुए।

धनुर्दास और पोंन्नाच्चियार (हेमाम्बा) का एम्पेरुमानार से बहुत लगाव था। वे श्री रंगम में एम्पेरुमानार और भगवान की सेवा करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगे। एक बार नम्पेरुमल के तीर्थवारी (उत्सव के समापन दिवस पर), मंदिर की टंकी पर चढ़ते हुए एम्पेरुमानार धनुर्दास का हाथ पकड़ते हैं। इस पर कुछ शिष्य सोचते हैं कि एम्पेरुमानार जैसे सन्यासी के लिए धनुर्दास (उनके वर्ण के कारण) का हाथ पकड़ना ठीक नहीं है। वे सब इस बात को एम्पेरुमानार के सामने रखते हैं और एम्पेरुमानार एक सुंदर द्रष्टांत द्वारा धनुर्दास और पोंन्नाच्चियार के गौरव को स्थापित करते हैं।

एम्पेरुमानार उन्हें धनुर्दास के घर जाकर गहने चुराकर लाने के लिए कहते हैं। वे सब धनुर्दास के घर जाते हैं और देखते हैं की पोंन्नाच्चियार सो रही थी। वे चुपके से उनके पास जाते हैं और उनके शरीर पर जो भी गहने थे उन्हें उतारने का प्रयत्न करते हैं। पोंन्नाच्चियार यह जानकर की ये श्रीवैष्णव कुछ चुराने की कोशिश कर रहे हैं और यह सोचकर की वे ऐसा अपनी निर्धनता के कारण कर रहे हैं वह उन्हें आसानी से गहने उतारने देती है। जब वे एक तरफ के गहने निकाल लेते हैं तो पोंन्नाच्चियार दूसरी तरफ के गहने उतारने के लिए करवट बदलती है, जिससे वे लोग आसानी से दूसरी और के गहने निकाल सके। परन्तु इससे वे लोग सतर्क हो जाते हैं और डरकर वहाँ से भाग जाते हैं और एम्पेरुमानार के पास लौट आते हैं। इस द्रष्टांत को सुनने के बाद एम्पेरुमानार उन्हें धनुर्दास के घर जाकर वहाँ का हाल जानने को कहते हैं। वे वहाँ जाकर देखते हैं कि धनुर्दास घर पर आ गये और पोंन्नाच्चियार से बात कर रहे हैं। वे उनसे एक तरफ के गहने नहीं होने का कारण पूछते हैं। पोंन्नाच्चियार बताती है कुछ श्री वैष्णव गहने चुराने के लिए आये थे और उन्होंने मुझे सोया हुआ जानकर एक तरफ के गहने उतार लिए तब मैंने दूसरी तरफ  निकालने के लिए करवट ली पर वे चले गये।

यह जानकर धनुर्दास बहुत दुखी होते हैं और पोंन्नाच्चियार से कहते हैं  कि उन्हें पत्थर के समान लेटे रहना चाहिए था जिससे वे लोग जैसे चाहे गहने निकाल सकते थे और करवट बदलकर उन्होंने श्री वैष्णवों को भयभीत कर दिया। वे दोनों ही इतने महान थे कि उनसे चोरी करने वालों की भी वे सहायता ही करना चाहते थे। सभी श्री वैष्णव एम्पेरुमानार के पास लौटते हैं और उन्हें पूरी घटना बताते हैं और उन दंपत्ति की महानता स्वीकार करते हैं। अगली सुबह एम्पेरुमानार सारी घटना धनुर्दास को बताते हैं और उनके गहने उन्हें लौटा देते हैं।

धनुर्दास, श्री विदुर और पेरियालवार (विष्णु चित स्वामीजी) के समान भगवान के प्रति अपने अत्यंत लगाव के कारण “महामती” (अत्यंत विवेकशील) के नाम से प्रसिद्ध हुए। पूर्वाचार्यों की रचनाओं में कई द्रष्टांतों में पोंन्नाच्चियार (हेमाम्बा) के निष्कर्ष दर्शाये गये हैं, जो बताते हैं कि उनको शास्त्रों में बहुत जानकारी थी।

 पूर्वाचार्यों की रचनओं में बहुत से स्थानों पर धनुर्दास और उनकी पत्नी से संबंधित कई वृतांत प्रस्तुत किये गये हैं।

 हम उनमें से कुछ यहाँ देखेंगे:

  •  6000 पद गुरुपरंपरा प्रभाव – एक बार एम्पेरुमानार विभीषण की शरणागति पर व्याख्यान कर रहे थे। उस गोष्ठी में से धनुर्दास उठकर पूछते हैं “ अगर विभीषण (जिन्होंने सर्वस्व त्याग किया) को स्वीकार करने के लिए श्री राम लम्बे समय तक सुग्रीव और जामवंत से विचार विमर्ष करते हैं, तो मैं जो परिवार के मोह में पड़ा हुआ हूँ, उसे मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी? एम्पेरुमानार कहते हैं – अगर मुझे मोक्ष प्राप्त होगा तो तुम्हें भी होगा; अगर महापूर्ण स्वामीजी (पेरियनम्बि)  को मोक्ष प्राप्त होगा तो मुझे भी होगा; अगर आलवन्दार स्वामीजी को मोक्ष प्राप्त होगा तो महापूर्ण स्वामीजी को भी होगा; इस तरह यह कड़ी गुरु परंपरा माला में उपर तक जाएगी। क्यूंकि शठकोप स्वामीजी (नम्माल्वार) ने घोषणा की है कि उन्हें मोक्ष प्राप्ती हुई है और क्यूंकि श्री महालक्ष्मीजी इस बाबत् भगवान से हमारे लिए अनुशंसा करती है, हम सभी को मोक्ष की प्राप्ति होगी। जिन्हें भागवत शेषत्व प्राप्त है उनकी मुक्ति निश्चित है – जैसे वे चार राक्षस जो विभीषण के साथ आए थे जिन्हें श्री राम ने विभीषण के संबंध से स्वतः ही संसार बंधन से छुड़ा दिया।
  • पेरिय तिरुमौली 2.6.1 – पेरियवाच्चन पिल्लै व्याख्यान– भगवान के प्रति धनुर्दास के प्रगाढ़ ममत्व (यशोदा और पेरियालवार /श्री विष्णुचित स्वामीजी  के समान) को यहाँ दर्शाया गया है। नम्पेरुमल (श्री रंगनाथ) की सवारी के दौरान धनुर्दास, सावधानी से भगवान् को देखते हुए उनके सन्मुख चला करते थे और अपने हाथों को तलवार पर रखते थे। यदि नम्पेरुमल को जरा सा भी झटका लग जावे तो वे तलवार से स्वयं को मार लेते (क्यूंकि उन्होंने स्वयं को नहीं मारा, हम समझ सकते हैं कि वे नम्पेरुमल को अत्यंत ध्यान से ले जाया करते थे)। इस विशेष ममत्व के कारण, धनुर्दास को “महामती” कहते थे। यहाँ ज्ञानी/ बुद्धिमान होने से आश्रय, भगवान के कल्याण के लिए चिंतित होने से है।
  • तिरुविरुथ्थम 99 – नम्पिल्लै (कलिवैरीदास स्वामीजी) व्याख्यान – जब भी कुरेश स्वामीजी तिरुवाय्मोळि का व्याख्यान आरम्भ करते थे, धनुर्दास बहुत भावुक हो जाते थे और श्री कृष्ण चरित्र का आनंद में मग्न हो जाते थे। उसे देखकर कुरेश स्वामीजी धनुर्दास की बहुत प्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं कि “हम भागवत विषय का ज्ञान प्राप्त करके उसे दूसरों को समझाने का प्रयास करते हैं, परन्तु आप हमारे समान न होकर भगवान के ध्यान में भाव विभोर हो जाते हैं, आपका स्वाभाव अत्यंत प्रशंसनीय है”। कुरेश स्वामीजी स्वयं भगवान् के ध्यान में द्रवित हो जाया करते थे – यदि वे धनुर्दासजी के बारे में ऐसा कहते हैं तो हम उनकी महानता को समझ सकते हैं।
  • तिरुविरुथ्थम 9 – नम्पिल्लै (कलिवैरीदास स्वामीजी) स्वउपदेश – एक बार एम्पेरुमानार श्रीरंगम से तिरुमला जाना चाहते थे। उस समय वे एक श्रीवैष्णव को भण्डार से (जिसे धनुर्दास नियंत्रित करते हैं ) कुछ चावल लाने के लिए भेजते हैं। जब धनुर्दास को एम्पेरुमानार के श्रीरंगम से जाने की योजना के बारे में ज्ञात होता है, वे भण्डार में जाकर अत्यंत दुखी होकर रोने लगते हैं। इससे उनके एम्पेरुमानार के प्रति लगाव का पता चलता है। वह श्रीवैष्णव एम्पेरुमानार के पास लौटकर उन्हें पूरी घटना बताते हैं और धनुर्दास का भाव समझकर एम्पेरुमानार कहते हैं कि वे भी धनुर्दास से वियोग नहीं सह सकते।
  •  तिरुवाय्मोळि 4.6.6 – नम्पिल्लै (कलिवैरीदास स्वामीजी) व्याख्यान – एक बार धनुर्दास के दो भतीजे (जिनके नाम वंदर और चोंदर था) राजा के साथ जाते हैं। राजा उन्हें एक जैन मंदिर दिखाकर, उसे विष्णु भगवान का मंदिर बताते हुए उन्हें वहाँ प्रणाम करने को कहता है। वास्तुकला में समानता देखकर वे तुरंत उसे प्रणाम करते हैं परंतु फिर राजा उन्हें बताता है कि वह सिर्फ उन्हें सता रहा था और यह एक जैन मंदिर है। वंदर और चोंदर यह जानकर कि उन्होंने श्रीमन्नारायण भगवान के अतिरिक्त किसी और को प्रणाम किया है, तुरंत बेहोश हो जाते हैं। धनुर्दास यह वृत्तांत सुनकर उनके पास दौड़ते हुए जाते हैं और उन्हें अपने चरणों की धूल लगाते हैं जिससे वे तुरंत पुनः होश में आ जाते हैं। यह दर्शाता है की भागवतों के चरण कमल की धूल ही देवान्तर (भले ही अनजाने में किया गया) भजन का एक मात्र उपाय है।
  • तिरुवाय्मोळि 1.5.11 – नम्पिल्लै (कलिवैरीदास स्वामीजी) व्याख्यान – पालेय् तमिळर् इसै कारर् पत्तर्”, के लिए एक बार अजह्वान ने कहा था श्री परांकुश नम्बि पालेय् तमिळर् (तमिल भाषा में महान विशेषज्ञ) है। आलवार तिरुवरंग पेरुमाल अरयर इसै कारर् (संगीतज्ञ) और पिल्लै उरंगा विल्ली धनुर्दास पत्तर् (भक्त – महान प्रेमी)” है।

बहुत से द्रष्टांतों में धनुर्दास का कृष्ण भगवान के प्रति लगाव दर्शाया गया है-

  • तिरुविरुथ्थम 95 – पेरियवाच्चन पिल्लै व्याख्यान – एक बार एक ग्वाला राजा के लिए जा रहा दूध चुरा लेता है और राजा के सिपाही उसकी पिटाई करते हैं । वह देखकर धनुर्दास उस ग्वाले को कृष्ण समझकर, उन सिपाहियों के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं कि वे उस ग्वाले को छोड़ दे और उसके अपराध का जो भी दंड है वह उन्हें दे।
  • नाच्चियार तिरुमोळि 3.9 – पेरियवाच्चन पिल्लै व्याख्यान – धनुर्दास कहते हैं “क्यूंकि कृष्ण बहुत छोटे हैं, वे स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकते। उनके माता पिता भी बहुत ही नरम स्वाभाव के हैं और उनकी रक्षा नहीं कर सकते क्यूंकि वे खुद कारागार में बंद हैं। कंस और उसके साथी निरंतर उन्हें मारने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। केवल अँधेरी रात ने ही (जिसमें कृष्ण का जन्म हुआ) उन्हें संरक्षित किया है। इसलिए हम मिलकर अँधेरी रात की प्रशंसा करे जिसने भगवान की रक्षा की।
  • पेरियाळ्वार तिरुमोळि 2.9.2 – तिरुवाय्मोळि पिल्लै व्याख्यान – धनुर्दास गोपियों द्वारा यशोदा से कृष्ण के माखन चुराने की शिकायत किये जाने पर कृष्ण के पक्ष में समर्थन करते हुए कहते हैं कि – क्या उन्होंने कोई ताला तोडा? क्या किसी के गहने/ जवाहरात चोरी किये? फिर क्यों वे कृष्ण की शिकायत करती हैं ? उनके स्वयं के घर में बहुत सी गायें हैं जिनसे दूध और बहुत सा मक्खन होता है। वे क्यों कहीं और से उसे चुरायेंगे? वे तो छोटे बच्चे हैं, संभवतः वे किसी और के घर को अपना घर समझकर अन्दर चले गये होंगे। ये गोपियाँ क्यों कहती रहती हैं कि उन्होंने दही, मक्खन, दूध आदि चुराया है?

पोंन्नाच्चियार (हेमाम्बा) भी उनके समान ही ज्ञानी थी और बहुत से द्रष्टांतों द्वारा यह दर्शाया गया है। चरमोपाय निर्णय में एम्पेरुमानार ने पोंन्नाच्चियार के विवेक को जानकर अपना वैभव उनके द्वारा स्थापित कराया। पूरा द्रष्टांत http://ponnadi.blogspot.com/2012/12/charamopaya-nirnayam-ramanujar-our-saviour-2.html पर पढ़िए।

पिल्लै लोकाचार्य ने भी भगवान के मंगलाशासन (भगवान के कल्याण की चाहना) को समझाते हुए अपनी प्रसिद्ध रचना श्री वचन भूषण दिव्य शास्त्र में पिल्लै उरंगा विल्ली धनुर्दास कि महिमा दर्शायी है।

कुछ समय बाद, धनुर्दास अपने अंतिम दिनों में सभी श्री वैष्णवों को आमंत्रित करते हैं, तदियाराधन करते हैं और उनका श्रीपाद तीर्थ ग्रहण करते हैं। वे पोंन्नाच्चियार को बताते हैं कि वे परमपद की और प्रस्थान करेंगे और पोंन्नाच्चियार को यहीं कैंकर्य करना है। एम्पेरुमानार की पादुकायें अपने मस्तक पर रखकर, वे अपनी चरम तिरुमेनी का त्याग करते हैं। श्री वैष्णव उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी करते हैं, कावेरी नदी का जल लाकर उन्हें उर्ध्वपूर्ण से सुसज्जित आदि करते हैं। पोंन्नाच्चियार (हेमाम्बा) यह समझते हुए कि धनुर्दास के लिए परमपद का कैंकर्य प्रतीक्षा कर रहा है, ख़ुशी से उस स्थान की सजावट करती है और पूरे समय सभी श्री वैष्णवों का ध्यान रखती है। अंततः जब धनुर्दास की तिरुमेनी पालकी पर ले जाई जाती है और सड़क के अंतिम छोर तक पहुँचती है, वे धनुर्दास के वियोग को सहन नहीं कर पाती और जोर से विलाप करने लगती है और तुरंत अपना शरीर भी त्याग देती है। सभी श्री वैष्णवजन उन्हें देखकर चकित रह जाते हैं और उसी समय उन्हें भी धनुर्दास के साथ ले जाने की व्यवस्था करते हैं। यह भागवतों के प्रति लगाव के अत्यधिक स्तर को दर्शाता है जहाँ वे भागवतों से क्षण भर का वियोग भी सहन नहीं कर सकते।

मणवाल मामुनिगल ने विभिन्न आचार्यों के पासुरों के आधार पर “इयल सार्रुमुरै” (जिसका उत्सव के समय में इयरपा के अंत में गाया जाता है) का संकलन किया है। इसका पहला पासूर धनुर्दास द्वारा लिखा गया है और हमारे संप्रदाये का सार है।

नन्रुम् तिरुवुदैयोम् नानिलथ्थिल् एव्वुयिर्क्कुम
ओन्रुम् कुरै  इल्लै ओदिनोम्
कुंरम् एदुथ्थान अदिचेर इरामनुजन थाल
पिदिथ्थाऱ् पिदिथ्थारैप् पर्ऱि

अर्थ:- हम घोषणा करते हैं कि कोई चिंता-फिकर न करते हुए, वास्तविक संपत्ति (कैंकर्य) को करते रहें क्यूंकि हम श्रीवैष्णवों की शरण में है, जो श्रीरामानुज की शरण है, जो स्वयं भगवान कृष्ण के शरण है, जिन्होंने अपने प्रिय भक्तों (गोप और गोपियों) की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था।

इस पासूर में धनुर्दास ने निम्न सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत दर्शाये है:

  • श्री वैष्णवों की सबसे बड़ी संपत्ति – कैंकर्यश्री (दासत्व की संपत्ति)
  • श्री वैष्णवों को सांसारिक विषयों की चिंता नहीं करना चाहिए
  • श्री वैष्णवों को कैंकर्यश्री की महा संपत्ति भगवान और एम्पेरुमानार की कृपा से मिलती है
  • आचार्य परंपरा के द्वारा श्री वैष्णवों का एम्पेरुमानार से संबंध है

बार बार हमारे पूर्वाचार्यों ने बताया है कि श्रीवैष्णव की महिमा किसी विशेष वर्ण में जन्म से नहीं होती अपितु भगवान और अन्य श्री वैष्णवों के प्रति उसकी निष्ठा और प्रेम से होती है। पिल्लै उरंगा विल्ली धनुर्दास का जीवन और हमारे आचार्यों द्वारा उनकी महिमा गान, हमारे आचार्यों का इस सिद्धांत पर उनके मनोभाव का स्पष्ट संकेत है।

इस तरह हमने पिल्लै उरंग विल्ली धनुर्दास और पोंन्नाच्चियार के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी। वे दोनों ही भागवत निष्ठा में पूर्णतः स्थित थे और एम्पेरुमानार के बहुत प्रिय थे। हम सब उनके श्री चरण कमलो में प्रार्थना करते हैं कि  हम दासों को भी उनकी अंश मात्र भागवत निष्ठा की प्राप्ति हो।

पिल्लै उरंगा विल्ली (धनुर्दास) की तनियन :

जागरूग धनुष्पाणिम पानौऊ कत्गासमंविधम्।
रामानुजस्पर्शवीधिम राधधान्तार्थ प्रकाशकम्।।
भागीनैयाध्वयायुतं भाष्यकारभारम्वहम्।
रंगेशमंगलकरम धनुर्दासम् अहं भजे।।

अडियेन् भगवति रामानुजदासी

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