पेरियवाच्चान पिळ्ळै

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

पेरियवाच्छान पिळ्ळै – सेंगनूर

तिरुनक्षत्र : श्रावण मास , रोहिणि नक्षत्र
अवतार स्थाल : सेंगनूर
आचार्य : नम्पिळ्ळै
शिष्य : नायनाराचान पिळ्ळै ,वादि केसरि अळगिय मणवाळ जीयर्, परकाल दास इत्यादि

पेरियवाच्छान पिळ्ळै, सेंगणूर मे, श्री यामुन स्वामीजी के पुत्र “श्री कृष्ण” के रूप मे अवतरित हुए और पेरियवाच्चान पिळ्ळै के नाम से मशहूर हुए । नम्पिळ्ळै के प्रधान शिष्यों में से वे एक थे और उन्होंने सभी शास्त्रार्थों का अध्ययन किया । नम्पिळ्ळै के अनुग्रह से पेरियवाच्चान पिळ्ळै सम्प्रदाय में एक प्रसिद्ध आचार्य बने ।

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पेरियवाच्छान पिळ्ळै – नम्पिळ्ळै

पेरिय तिरुमोळि ७. १०. १० कहता है कि – तिरुक्कण्णमंगै एम्पेरुमान की इच्छा थी कि वे तिरुमंगै आळ्वार के पाशुरों का अर्थ उन्हीं से सुने| अतः इसी कारण, कलियन नम्पिळ्ळै बनके अवतार लिए और एम्पेरुमान पेरियवाच्छान पिळ्ळै का अवतार लिए ताकि अरुलिचेयळ के अर्थ सीख सके । पेरियवाच्छान पिळ्ळै व्याख्यान चक्रवर्ति , अभय प्रदराजर  इत्यादि नामों से भी जाने जाते हैं । पूर्वाचार्यों के अनुसार, उन्होंने नायनाराचान पिळ्ळै को दत्तक लिया था।

इनके जीवित काल में, इन्होंने निम्न लिखित ग्रंथों की व्याख्या किया है :

  • ४००० दिव्य प्रबन्ध – आप श्रीमान ने हर एक अरुळिचेयळ की व्याख्या लिखी है| लेकिन पेरियाळ्वार तिरुमोळि के लग भग  ४०० पाशुर  नष्ट होने से , मामुनिगळ ने  सिर्फ उन पाशुरों की व्याख्या लिखे।
  • स्तोत्र ग्रन्थ – पूर्वाचार्य के श्री सूक्ति जैसे स्तोत्र रत्न , चतुः श्लोकी , गद्य त्रय इत्यादि और जितन्ते स्तोत्र पर व्याख्यान लिखा ।
  • श्री रामायण – श्री रामायण के कुछ मुख्य श्लोक चुन के उन श्लोकों का रामायण तनि श्लोकि में विस्तार से विवरण किया । विभीषण शरणागति के वृतान्त के विवरण के लिए इन्हे अभय प्रदराजर करके गौरवान्वित किया गया था।
  • इन्होंने कई रहस्य ग्रंथ जैसे माणिक्क मालै , परंत रहस्य , सकल प्रमाण तात्पर्य इत्यादि (जो रहस्य त्रय से प्रतिपादित विषयों को अद्भुत रूप से समझाती है) कि रचना की। रहस्य त्रय को लिखित प्रमाण करने में आप श्री सर्वप्रथम हैं| पिळ्ळै लोकाचार्य ने नम्पिळ्ळै और पेरियवाच्चान पिळ्ळै के उपदेशों के अनुसार अपना अष्टादश रहस्य ग्रंथो की रचना किये है।

इनकी अरुळिचेयळ और श्री रामायण में निपुणता का प्रमाण इनसे लिखे गए पाशुरपड़ि रामायण ही है जिसमे वे केवल अरुळिचेयळ के शब्द उपयोग से पूरे श्री रामायण का विवरण सरल रूप मे प्रस्तुत किया है।

वादि केसरि अळगिय मणवाळ जीयर् के वृतांत से हमें इनकी अनुग्रह का महत्व जानने को मिलता है । अपने पूर्वाश्रम में जीयर् पेरियवाच्छान पिळ्ळै के रसोई (तिरु मडपळ्ळि) में सेवा करते थे । वे अनपढ़ थे लेकिन अपने आचार्य के प्रति अपार भक्ति था । वेदांत विषय के बारे में कुछ श्री वैष्णव चर्चा करते समय , चर्चा की विषय के बारे में इन्होंने पूछ – ताछ की । इन्हे अनपढ़ और गवार समझके उन्होंने घमंड से जवाब दिया की “मुसला किसलयम्” (नव खिला लोढ़ा) नामक ग्रंथ के बारे में चर्चा कर रहे हैं । अपने आचार्य के पास जाके घटित संघठन को सुनाते हैं और पेरियवाच्छान पिळ्ळै दया करते हुए निश्चित करते हैं कि उन्हें सब कुछ सिखायेंगे । थोड़े साल बाद , शास्त्र के विद्वान , वादि केसरि अळगिय मणवाळ जीयर् बनके सम्प्रदाय के कई ग्रंथों कि रचना की|

जैसे पेरिय पेरुमाळ , पेरिय पिरट्टि , पेरिय तिरुवडि , पेरियाळ्वार और पेरिय कोयिल, आच्चान पिळ्ळै भी अपनी महानता के कारण पेरियवाच्चान पिळ्ळै नाम से प्रसिद्ध हुए ।

पेरियवाच्चान पिळ्ळै के लिए अपने उपदेश रत्न माला में मणवाळ मामुनि २ पाशुर समर्पित करते हुए कहते हैं –

पाशुर: ४३
नम्पिळ्ळै तम्मुडैय नल्लरुळाल् एवियिडप्
पिन् पेरियवाच्चान पिळ्ळै अतनाल्
इन्बा वरुबति माऱन् मऱैप् पोरुळै चोन्नतु
इरुपतु नालायिरम्

सरल अनुवाद :अपने कारुण्य से नम्पिळ्ळै ने पेरियवाच्चान पिळ्ळै को तिरुवाय मोळि का व्याख्यान लिखने का आदेश दिया । उसे ध्यान में रखते हुए वेद का सार तिरुवाय मोळि का अत्यन्त मनोरंजनीय व्याख्यान पेरियवाच्चान पिळ्ळै ने रचना किया। यह व्याख्यान श्री रामायण(२४००० श्लोक ) की तरह २४००० पड़ि से रची गई ।

पाशुर: ४६
पेरियवाच्चान पिळ्ळै पिन्बुळ्ळवैक्कुम्
तेरिय व्याकियैगळ् चेय्वाल्
अरिय अरुळिच्चेयल् पोरुळै आरियर्गट्किप्पोतु
अरुळिच्चेयलाय्त् तऱिण्तु

सरल अनुवाद: पेरियवाच्चान पिळ्ळै की अरुळिचेयळ व्याख्यान से ही , महान आचार्य पुरुष अरुळिचेयळ का अर्थ समझकर अरुळिचेयळ के सही अर्थों का प्रचार कर रहे हैं । इनके व्याख्यान के बिना , अरुळिचेयळ के निगूढ़ अर्थो की चर्चा भी नहीं कर सकेगा ।

मामुनिगळ , अपने पाशुर ३९ में आप श्रीमान की गणना तिरुवाय्मोळि के पांञ्च व्याख्यानकर्तावों मे करते हुए कहते हैं – आप श्रीमान ने स्वयं अपने ग्रंथ का सम्रक्षण किया और तत्पश्चात इसी का प्रचार और प्रसार भी किया । क्यूँकि इसके बिना अरुळिचेयळ के निगूढ़ अर्थो को समझना असम्भव है।

वार्थामाला ग्रन्थ और पूर्वाचार्य के ग्रंथों में इनके जीवन के अनेक घटनाओं के बारे में प्रस्ताव किया गया है| आईये इनमे से कुछ अब देखेंगे:

  • किसी ने इनसे पूछा “क्या हम एम्पेरुमान की कृपा के पात्र हैं या लीला के पात्र हैं?” – पेरियवाच्चान पिळ्ळै जवाब देते हैं – “अगर हम सोचेंगे कि हम इस सँसार में फसें हैं तो एम्पेरुमान की कृपा के पात्र हैं और अगर हम सोचेंगे कि हम इस सँसार में खुश हैं तो एम्पेरुमान की लीला के पात्र हैं । “
  • जब पारतंत्रिय का मतलब किसी ने पूछा तब पेरियवाच्चान पिळ्ळै जवाब देते हैं कि एम्पेरुमान की शक्ति पे निर्भर होकर , सभी उपायान्तर(स्वयं प्रयास के साथ ) को छोड़े और भगवत कैङ्कर्य मोक्ष के लिए तड़प रहे तो उसे पारतंत्रिय कहा जाता है।
  • किसी ने पूछा – स्वामी, उपाय क्या है  ? क्या उपाय मतलब सब कुछ छोड़ देना होता है या उन्हें पकड़ लेना होता है ? तब पेरियवाच्चान पिळ्ळै जवाब देते हैं कि उपरोक्त दोनों भी उपाय नहीं है। एम्पेरुमान ही हैं जो हमे सभी विषयों से छुड़ाके उन्हें ही पकड लेने का ज्ञान दे रहे हैं । इसलिए एम्पेरुमान ही उपाय हैं ।
  • पेरियवाच्चान पिळ्ळै के एक रिश्तेदार चिंतित थी और जब चिंता का कारण पूछा गया तो वह जवाब देती है कि न जाने कितने समय से इस सँसार में वास कर रही है और कर्म बहुत इक्कट्ठा कर चुकी है ऐसे में एम्पेरुमान कैसे मोक्ष प्रसाद करेंगे । इसके लिए पेरियवाच्चान पिळ्ळै जवाब देते हैं कि हम एम्पेरुमान के वस्तु हैं और बिना किसी कर्म का लिहाल किये वह हमें ले जायेंगे ।
  • जब एक श्री वैष्णव दूसरे श्री वैष्णव के दोषों को देख रहा है , तब पेरियवाच्चान पिळ्ळै कहते हैं कि यम राज अपने सेवक से श्री वैष्णव के दोषों को ना देखकर उनसे दूर जाने का आदेश देते हैं, पिरट्टी कहती हैं “न कश्चिन् न अपराध्यति ” – दूसरों के दोषों को ना देखो । पेरुमाळ कहते हैं अगर मेरे भक्त गलती करते हैं वह अच्छे के लिए ही है , आळ्वार कहते हैं जो कोई भी एम्पेरुमान के भक्त हैं , वह कीर्तनीय हैं । पेरियवाच्चान पिळ्ळै व्यंग्य रूप से कहते हैं कि अगर किसी को श्री वैष्णव के दोष की गिनती करनी ही है तो वह अनामक व्यक्ति यही (जो श्री वैष्णव दूसरे श्री वैष्णव के दोष गण रहा हैं) हो ।
  • भागवत (भगवत भक्त) चर्चा के दौरान, किसी ने एम्पेरुमान के बारे में स्तुति की , तब पेरियवाच्चान पिळ्ळै कहते हैं विशेष विषय के बारे में चर्चा करते समय क्यों सामान्य विषय की चर्चा करे । पेरियवाच्चान पिळ्ळै कहते हैं हर श्री वैष्णव को अरुळिचेयळ इत्यादि में भाग लेना चाहिए ।

पेरियवाच्चान पिळ्ळै तनियन

श्रीमत् कृष्ण समाह्वाय नमो यामुन सूनवे ।
यत् कटाक्षैक लक्ष्याणम् सुलभः श्रीधरस् सदा ।।

मैं पेरियवाच्चान पिळ्ळै को प्रार्थन कर रहा हूँ जो यामुनर के पुत्र हैं और जिनके कटाक्ष से एम्पेरुमान श्रीमन्नारायण का अनुग्रह सुलभ से मिल सकता है।

उनके श्री कमल चरणो पे प्रणाम करके , अपने संप्रदाय को उनका योगदान हमेशा याद रखे ।

source

अडियेन इन्दुमति रामानुज दासि

20 thoughts on “पेरियवाच्चान पिळ्ळै”

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