कुरुगै कावलप्पन्

श्रीः

श्रीमते रामानुजाय नमः

श्रीमद्वरवरमुनये नमः

श्री वानाचलमहामुनये नमः 

तिरुनक्षत्र – विशाखा नक्षत्र 

अवतार स्थल – आलवार तिरुनगरी (आऴ्वार तिरुनगरि)

आचार्य – नाथमुनिगल् (श्री नाथमुनि). 

कुरुगैकावलप्पन नाथमुनिगल् (श्री नाथमुनि) के प्रिय शिष्य थे | नाथमुनिगल् (श्री नाथमुनि), काटुमन्नार कोइल को लौटने के बाद, पेरिय पेरुमाळ  (श्री रंगनाथ पेरुमाळ) का ध्यान करते हुए कुछ समय बिताये ।  अनन्तर, उन्होंने कुरुगैकावलप्पन् को योग रहस्य सिखाकर उसको यही सिखाने का आदेश दिया । कुरुगैकावलप्पन्  ने आचार्य के आदेशानुसार योग रहस्य को सीख कर निरंतर अष्टांग योग के माध्यम से भगवान का ध्यान करने लगे । जब नाथमुनिगल् को परमपद प्राप्त हुआ, कुरुगैकावलप्पन् ने उसी जगह में रह कर, उस पवित्र जगह का ख्याल रखते हुए, भगवान का ध्यान करने लगे ।

मणक्काल् नम्बि (श्री राममिश्र)  ने उनके शिष्य  आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) को  कुरुगैकावलप्पन्  से योग रहस्य सीखने का आदेश दिया था । आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) शिष्यों के साथ कुरुगैकावलप्पन् के पास गये । उस वक्त कुरुगैकावलप्पन्  भगवान के ध्यान में मग्न थे | कुरुगैकावलप्पन् के ध्यान को विघ्न देना नहीं चाहते हुए आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) शिष्यों के साथ कुरुगैकावलप्पन्  के पीठ पीछे दीवार के पीछे चुपचाप खड़े हुए । एकाएक कुरुगैकावलप्पन ध्यान से उत्तेजित होकर पूछे कि कोई “चोट्ट कुल” (महान परिवार) में पैदा  हुआ आदमी मेरे पीछे है ?  तब आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) बाहर आकर प्रकट करते कि वह नाथमुनिगल् (श्री नाथमुनि) के पौत्र हैं और पूछते कि -” हम सब दीवार के पीछे थे । आप बिना देखे कैसे पहचाना कि कोई “चोट्ट कुल” (महान परिवार) का आदमी आया हैं ?” कुरुगैकावलप्पन् ने बताया की -“जब वह भगवान के ध्यान में मग्न होते, तो कभी भी पेरिय पेरुमाळ  (श्री रंगनाथ पेरुमाळ) ने, पेरिय पिराट्टि (श्री रंगनाच्चियार्) के बुलाये जाने पर भी मेरे से नज़र नहीं हटाते थे । लेकिन जब आप मेरे पीठ के पीछे खड़े हुए, पेरिय पेरुमाळ  (श्री रंगनाथ पेरुमाळ) मेरे कन्धों को नीचे दबाकार बार-बार मेरे पीठ के पीछे देखने लगे । इससे मैने पहचाना कि भगवान का अत्यंत प्रिय नाथमुनिगल् (श्री नाथमुनि) के परिवार में से कोई व्यक्ति मेरे पीठ के पीछे है “।  कुरुगैकावलप्पन् के ध्यानानुभव और नाथमुनिगल् (श्री नाथमुनि) के प्रति भगवान के प्रेम और प्रीति को जानकर आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) अत्यन्त संतुष्ट हुए |

फिर आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) ने कुरुगैकावलप्पन् के चरण-कमल में आश्रित होकर योग रहस्य सिखाने की प्रार्थना किये । कुरुगैकावलप्पन् ने आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) को वचन दिया कि वे इस संसार को छोड़कर जाते वक्त आळवन्दार को वह योग रहस्य सिखा देंगे । योग रहस्य में विशेष विद्वान् होने के कारण कुरुगैकावलप्पन् इस संसार को छोड़ने का दिन ठीक से जानते थे। कुरुगैकावलप्पन् ने उस दिन का,यानि दिनांक और समय सहित विवरण को आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) के समक्ष प्रकट किये और पूर्वोक्त दिन, योग रहस्य सीखने के लिए वापस आने को कहा । आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) ने कुरुगैकावलप्पन् की बात मान कर श्रीरंगम् वापस होकर पेरिय पेरुमाळ  (श्री रंगनाथ पेरुमाळ) की सेवा करने लगे ।

तदनंदर,  श्रीरंगम् में अध्ययन उत्सव के समय पर, पेरिय पेरुमाळ  (श्री रंगनाथ पेरुमाळ) के समक्ष तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरयर् नम्माऴ्वार का तिरुवाय्मोऴि के गान का निवेदन प्रस्तुत करते हुए, आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) की ओर देखते है और तिरूवनन्तपुरम् का पासुर (गाना) “नाडुमिनो नमार्गलुल्लिर नामुमक्कू अरियच्चोंनोम “(भक्त लोग  एक बार  तिरूवनन्तपुरम् को आना) गाते है | इसको भगवान का आदेश मानकर आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) तिरूवनन्तपुरम् चले गए। तिरूवनन्तपुरम् में भगवान की पूजा करते वक्त आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) को एहसास होता है कि यह वही दिन है जिस दिन कुरुगैकावलप्पन् उन्हें योग रहस्य सिखाना चाहते थे । तुरंत उधर पहुँचने के लिए पुष्पक विमान् नहीं सोच कर आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य) को बहुत शोक हुआ ।

कुरुगैकावलप्पन् ध्यान में भगवान का स्मरण करते उनको आचार्य का श्री चरण प्राप्त हुआ |

इस प्रकार, भगवान और आचार्य भक्ति बढ़ने के लिए कुरुगैकावलप्पन् के श्री चरण में प्रार्थना करे ।

कुरुगैकावलप्पन् ध्यान श्लोक्: 

नाथमौनी पदासक्तं ज्ञानयोगादि सम्पदम्।

कुरुगाधिप योगींद्रं नमामि सिरसा सदा॥

Source

अडियेन श्रीनिवासराघव रामानुज दास