:श्रीः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः
जय श्रीमन्नारायण ।
आळ्वार एम्पेरुमानार् जीयर् तिरुवडिगळे शरणं ।
ओराण्वालि गुरुपरम्परा के अन्तर्गत श्री पेरिय पेरुमाळ् और श्री पेरिय पिराट्टि के बाद, श्री सेनै मुदलियार (विष्वक्सेनजी , भगवान श्रीमन्नारायण के सेनापति, नित्य सूरी श्री विश्वक्सेनजी ) जो इस परम्परा में तीसरे आचार्य है ।
- सेनै मुदलियार (विष्वक्सेनजी)
तिरुनक्षत्र – इप्पासि (आश्विन माह), पूरादम् (पूर्वाषाढ़ा)
ग्रन्थ सूची – विष्वक्सेनजी संहिता
विष्वक्सेनजीजी नित्य सूरि है । भगवान के प्रधान सेनापति है, भगवान कि आज्ञा से नित्य विभूति और लीला विभूति पर अपना नियंत्रण रखते है । वे कई नामो से जाने जाते है जैसे – सेनै मुदलियार, सेनाधिपति, वेत्रधर, वेत्रहस्तर इत्यादि । उनकी पत्नी का नाम सूत्रवति है । वे शेष-आसनर के नाम से भी जाने जाते है क्योंकि वे ऐसे पहले नित्य सूरी है जिन्हे भगवान का शेषप्रसाद् सर्वप्रथम इन्हे ही निवेदित किया जाता है ।
हमारे पूर्वाचार्यों के अनुसार पेरिय पिराट्टि विष्वक्सेनजीजी की आचार्य है और आळ्वार संत भी इनके शिष्य हुएँ है । बतलाते है की भगवान नित्य-लीला विभूति के कार्यों का नियंत्रण श्री विष्वक्सेनजीजीजी को दे रखा है, और भगवान अपने स्वधाम मे भक्तगणों और नित्यसूरियों के कैंकर्य का आनन्द् लेते है । पूर्वाचायों के अनुसार श्री विष्वक्सेनजीजी एक मन्त्री का अभिनय करते है और श्री भगवान एक राजकुमार का अभिनय करते है ।
श्री यामुनाचार्य ने अपने स्तोत्ररत्न (42 श्लोक) मे भगवान और विष्वक्सेनजीजी के सम्बन्ध को कुछ इस प्रकार दर्शाया है
त्वदीय भुक्तोज्झित शेष भोजिना त्वया निसृष्टात्मभरेण यद्यथा ।
प्रियेण सेनापतिना न्यवेदि तत् तथाSनुजानन्तमुदारवीक्षणैः ॥
इस श्लोक मे , श्री यामुनाचार्य भगवान को सम्बोधित करते हुये, श्री विष्वक्सेनजी कि प्रशंसा करते है और भगवान के उभय साम्राज्य (यानि नित्य विभूति – लीला विभूति) जो श्री विष्वक्सेनजी के नियण्त्रण मे है उसी दृष्य का आनन्द लेते है।
भावार्थ (संक्षिप्त) – इस श्लोक मे यामुनाचार्य कहते है कि विष्वक्सेनजी पेरुमाल् भगवान की आज्ञा से उनके उभय साम्राज्य (यानि नित्य-लीला विभूति) के नियंत्रक है और जो भगवान का शेष प्रसाद सबसे पहले प्राप्त करते है, और उभय विभूतियों – नित्य सूरी और लीला विभूति दोनों के ही प्रिय है । श्री विष्वक्सेनजी भगवान के कार्यों को (भगवान के कटाक्ष मात्र से) समझकर भलि-भाँति निभाते है । श्री विष्वक्सेनजी भगवान के ऑंखों से समझ जाते है की उनकी क्या इच्छा है और वे अपने निपुणता से उस कार्य को निभाते है ।
श्री विष्वक्सेनजी का तनियन् –
श्री रंगचँद्रमसम् इन्द्रियाविहर्तुम् विन्यस्यविस्वचिद चिन्नयनाधिकारम् ।
यो निर्वहत्य निसमन्गुळि मुद्रयैव सेनान्यमन्य विमुकास्तमसि श्रियाम ॥
हम सारे भगवद्-भक्तों से विनती करते है कि जैसे श्री विष्वक्सेनजी भगवद्-कैंकर्य मे संलिप्त है, इसी तरह सम्प्रदाय अनुयायिओं को उनसे प्रार्थना करनी चाहिए की हमें भी इसी तरह, के कैंकर्य मे संलिप्त रखे ।
अडियेन सेतलूर सीरिय श्रीहर्ष केशव कार्तीक रामानुज दासन्
अडियेन वैजयन्त्याण्डाळ् रामानुज दासि
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